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Image by Leo Chane

अब तुम ही कहो...क्या अधूरी हूँ मैं...?


अब तुम ही कहो... क्या अधूरी हूँ मैं…ख़ुद से रूबरू अभी हुई नहीं हूँ मैं, क्या अधूरी हूँ मैं...? 


नये पन्ने उलट रही हूँ उस पोशीदा किताब के, मुख़्तलिफ़ मुलाक़ातें करवा रहे हैं जो खुद अपने ही आप से। 


कहाँ छुपे थे तुम? शायद किसी से डरे हुए थे तुम, क्या सही वक्त का इंतज़ार कर रहे थे…या मुझे आज के लिये तैय्यार कर रहे थे...? 


दो पल रूठी थी मैं तुमसे…क्यूँ देर कर दी मिलने में मुझसे। पर तुम तो अपने हो… फ़क़त मेरा ही साया हो, देर से ही सही, अब तुम खिल तो रहे हो... ख्यालों में ही सही मुझे मिल तो रहे हो। 

अब उस किताब में नये पन्नों का है इंतज़ार…नई जिंदगी की शुरुआत कर पाऊँ फ़िर एक बार। सदा अधूरी ही रही हूँ, ख़ुद से नयी मुलाक़ातें यूँ ही कर रही हूँ। 

एक नयी पहचान बनाऊँगी…एक नयी शख़्सियत यूँ ही बन कर दिखाऊंगी। 


नये पन्ने उलट रही हूँ उस पोशीदा किताब के, मुख़्तलिफ़ मुलाक़ातें करवा रहे हैं जो खुद अपने ही आप से। 


अब तुम ही बता दो... क्या अधूरी हूँ मैं…ख़ुद से रूबरू अभी हुई नहीं हूँ मैं, क्या अधूरी हूँ मैं...? 


-इक़रा असद

 

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