
हटाओ, यादों का क्या करना है?
उठाने को बोझ अभी और भी हैं।
कब तक एक ही रज़ाई में रहना है?
जीने को मौसम अभी और भी हैं।
एक ही शहर में कब तक क़ैद रहना है?
और कितनी कोशिशें करनी हैं? और कितना ज़ुल्म सहना है?
अरे निकलो यहाँ से। अब आगे बढ़ो क्योंकि
शहर करने को रौशन अभी और भी हैं।
कुछ नफ़िल अदा कर तुम ख़ुदा पाने चले हो?
उसकी मख़लूक से इश्क़ करके तुम इश्क़ बदनाम करने चले हो।
क्या इस दुनियावी ख़ूबसूरती से होश खो बैठे?
ज़ियारत को हरम अभी और भी है।
क्या एक बार हारने से एसे डर जाओगे?
एक कहानी ख़तम होने से ठहर जाओगे?
इसी का नाम है ज़िंदगी चलने दो इसे!
कहानियाँ ख़तम होने को अभी और भी हैं।
क्या एक लड़ाई के बाद ही तुमने हमें परख लिया?
एक आँसू गिरते ही हमें कमज़ोर समझ लिया?
ये समझ लो के एक कली को फूल समझ बैठे हो,
क्योंकि खिलने को हम अभी और भी हैं।
क्या तुम पर भी एक अजीब सा बोझ है?
गुनाह कम हो जाए किसी एसी जगह की खोज है?
चलो फिर किसी रोते को हंसाए , किसी भूखे को खिलाए,
अंगीठियाँ करने को गरम अभी और भी है।
एक बार अगर रोए हो तो एक बार हंसे भी तो हो।
जिसे बाद में याद करके हंसी आए एसी जगह फसे भी तो हो।
आँसुओ का क्या है, पानी है उढ़ जाएँगे।
अभी तो ज़िंदगी में फिर से उढ़ने के मौक़े अभी और भी हैं।
-मोहसिना ख़ान
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