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Image by Leo Chane

एक चिट्ठी 12 साल के मयंक को


मयंक, जानता हूं अब तुझसे कभी मिल तो नहीं पाऊंगा

मगर शायद अब एक जरिया मिल गया है तुझसे बात करने का

मैं चाहता हूं तुम्हें हिम्मत देने का इस जमाने की धारदार काटती हुई सच्चाई से सामना करने का,

मगर फिर भी तुम्हें काफी समय मिलेगा हर ज़ख्म भरने का,


अभी बहुत सीधे साधे मासूम से हो तुम,

काश इस दुनिया की कड़वी सच्चाई जान सको तुम,

जानता हूं तुम्हें लगता है दसवीं में और बारहवीं में तुम सबसे अच्छे नंबर लाओगे और सेना में चले जाओगे,

और सेना में जाके इस देश के सारे दुश्मनों को हराओगे,

मगर तुम्हें क्या पता यहां दुश्मन बाहर से ज्यादा अंदर हैं

जिन्हें तुम इतनी आसानी से नहीं हरा पाओगे,

जानता हूं तुम्हें चिंता नहीं है आगे की,

क्योंकि तुम्हें लगता है बड़े भईया लोग हैं ना सब सम्हाल लेंगे,

मगर यकीन मानो तुम्हें जब जरूरत होगी तब कोई नहीं होगा और तुम एकदम अकेले हो जाओगे।


मयंक जानता हूं अभी तुम्हें शतरंज खेलना अच्छा लगता है, सबकी बात मानने वाला बनना अच्छा लगता है,

मगर कुछ सालों बाद जब ज़िंदगी तुमसे खेलना शुरू करेगी तब टूट के बिखर जाओगे,

वक्त मिलेगा तुम्हें बहुत कि खुद को समेट के फिर से जीना शुरू कर पाओ,

मगर ध्यान रखना चाहे कितना भी रोक ले कोई रास्ते तुम्हारे तुम बस आगे बढ़ते जाओ


अभी तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं की प्यार क्या है इसीलिए तुम्हें ये खूबसूरत लगता है

और सोचते हो कि प्यार में कितना सुकून होता है

मगर जब कुछ दिनों बाद प्यार तुम्हारी ज़िंदगी में पहली बार आएगा

तब समझोगे कि इसमें सिर्फ जज्बातों का खून होता है

तुम्हारा वो प्यारा सा हनीमून सा सपना ना जाने कितने हिस्सों में टूट जाएगा

देखते ही देखते तुम्हारी हंसी और मासूमियत का साथ तुमसे हमेशा के लिए छूट जाएगा


आज जिन हाथों में दूध का ग्लास है कल उन्हीं हाथों में सिगरेट और शराब होगी

और जितना तुम कभी सोच नहीं सकते तुम्हारी हालत उससे भी ज्यादा खराब होगी

तुम्हें तो पता भी नहीं है कि कितने खुशनसीब हो तुम

जो तुम्हें exams के सपने डराते हैं

तब क्या होगा जब उड़ेगी नींद तुम्हारी रातों की

और तुम्हारे बुरे हालातों के कारण तुम्हारी रातें भी बेताब होंगी


फिर एक दिन ऐसा आएगा कि ये दर्द असहनीय हो जाएगा

और तुझे लगेगा कि अब या तो दर्द को ख़तम कर दे या खुद को क्योंकि तू इसे अब और नहीं सह पाएगा

फिर वो वकत भी आएगा जब तू इससे ऊब के थक हार के इस मयंक को मार देगा

क्योंकि तू कुछ हासिल करने को इस हद तक हार जाएगा

की तू ना चाहकर भी खुद से खुद की नज़रों में ही गिर जाएगा

और फिर जो तू निकलेगा तो तुझमें सबकुछ बदल जाएगा।

फिर तू निकलेगा इस दुनिया का इक नया मयंक बनके, जहां तेरा एक अलग तरह की दुनिया से मेल होगा

फिर किसी का भी आना जाना तेरी ज़िंदगी में बस जैसे शतरंज का एक खेल होगा

किसे तेरी ज़िंदगी में कितनी चाल खेलनी है तब ये चुनाव सिर्फ तेरा होगा

लोगों को लगेगा कि वो समझ रहे हैं तुझे, मगर जिसे समझ के भी कोई जान नहीं पाता तू उनमें से एक होगा

और जिस रास्ते पे जाने से भी डरती है दुनिया, उसी गली से गुजर के एक घने खूबसूरत अंधेरे जंगल में तेरा बसेरा होगा हर दिन जहां पे इक नया रंग, हर दिन इक नया सवेरा होगा।


मयंक जानता हूं तुझसे कभी मिल नहीं पाऊंगा

मगर बस इतनी सी आरज़ू है कि अपनी ये दास्तां तुझसे कह सकूं

और इसी बहाने से थोड़ी देर के लिए ही मगर अपनी उन खूबसूरत बेपरवाह सी यादों में बह सकूं।


-मयंक शुक्ला

 

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