कम्बख्त दिल...

क्या करूँ कम्बख्त दिल
मानता ही नहीं,
जहा जाना नहीं,
वही खिलखिलाता है सही।
जहा एक तरफ दिमाग कह रहा रुक जा
वही दिल कह रहा कि एक और मौका दे,
कामज़रफ़ बना दिया है इसने
बार बार कह रहा दिल में जगह दे अपने।
बोलते फिरते कि मुहब्बत है तुमसे
सच में है या बताते रहते मुझे
की मेरी आँखों के झरोखों की तारीफ तो की है
काश मेरी खैरो अएफइयत की बेचानी सुनी होती।
क्या उन चंद काँच की बॉटल से भी कम औकात है
क्या उन चंद सफेद पट्टी से भी कम औकात है?
दिमाग कह रहा रुक जा, दिल कह रहा चलता चल
कम्बख्त दिल ही तो है जो बोला एक नया सवेरा कर।
थाम हाथ उसका, राह बन जाएगी
हमारे बंधन से डर के मौत भी भाग जाएगी,
क्या करूँ कम्बख्त दिल,
मानता ही नहीं।
-तान्या श्रीवास्तवा