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Image by Leo Chane

कोई लौटा दे मेरे भीते हुए दिन?


"कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन?

बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे पल छीन!"


किशोर कुमार साहब का ये गीत आज मेरे कानों में गूंज रहा है।

हर पंक्ति महसूस करवाती है कि हम कितने बदकिस्मत है।

कहाँ चले गए वो दिन जब ये नन्ही सी चिड़िया अपने आसमान में उड़ा करती थी?

इन्ही पैरों से मे अपनी आज़ादी की हवाओं में नाचती थी,

आज इनको एक महामारी के बंधन से मुक्त नहीं कर पायी।

पल- पल उस हवा की याद आती है जो मेरे दिल को सुकून के उत्साह पर नचाया करता था।

आज सारे के सारे एक तुच्छ मास्क के पिंजरे से मुक्त नहीं हो पा रहे।

हे! धरती माँ,आज हमारे पापों का दण्ड तो दे दिया ना तुमने?

तुम्हें सताने की जो भूल की हमने उसके लिए अपना प्रतिशोध ले लिया?

इस लॉकडाउन ने मुझे एक अच्छा इंसान तो बनाया है पर फिर भी दिल उन्हीं बीते हुए दिनो में जी रहा है।

कैसे संभालूं अपने आप को?

कैसे शांत करूं अपने हृदय की रुदन को?

कैसे समझाऊं इन सब को की बीते हुए पल कभी वापस नही आते?

जितनी जल्दी मैं इस वास्तविकता को स्वीकार कर लूँ वही पर्याप्त है।


"ना मिलेगा वो पल, ना मिलेगा वो उत्साह,

बीते हुए दिन गए वो मेरे प्यारे पल छीन।

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन।"


-लावण्या वेणुगोपाल