
खुदा से पूछना है मुझको!

खुदा से पूछना है मुझको,
कि कहां पे तेरा ठिकाना है
जबतक मैं पा ना लूं तुझको,
मुझको बस चलते जाना है
मुझे पूछना है तुझसे,
कि उनसे हुई है क्या गलती
जिनको तो ज़िंदा रहने को,
ना पानी है ना खाना है
हां मुझे पूछना है तुझसे,
की कैसी है ये महामारी
जो खाती जा रही है सबको,
वो चाहे नर हो या नारी
वो कहते हैं कर्मों की सजा,
सबको यही पे मिलती है
तो मारने वालों कि संख्या में,
क्यूं आई नहीं उनकी बारी
हकीकत में जो पापी हैं,
जो वास्तव में हैं दुराचारी
खुदा से पूछना है मुझको,
कि कहां तेरी वो रहमत है
मासूम बेगुनाह मरे जा रहे,
क्या इतनी ही तेरी ताकत है
तू कहां चला जाता है,
जब बच्चियों को नोचा जाता है
वो चीखती हैं चिल्लाती हैं,
जब उन्हें खरोंचा जाता है
ना आते हैं अब कृष्ण यहां,
द्रौपदी की लाज बचाने को
ना ही आते श्री राम प्रभु,
सीता मां को छुड़वाने को
अब अंधकार है फैल गया,
कोई शक्तिमान को ले आओ
जो बैठे हैं ईश्वर के लिए,
उनकी उम्मीद बचाने को
हां मुझे पूछना है तुझसे,
क्या सच में तेरा वजूद भी है?
इस पृथ्वीलोक की दुनिया में,
क्या तेरे रहमत की इक बूंद भी है?
हर तरफ है फैली लाचारी,
हर तरफ है लाशें ही लाशें
इस पीड़ा भारी परिस्थिति में,
क्या तू साथ हमारे मौजूद भी है?
हां मुझे पूछना है तुझसे
क्या सच में तेरा वजूद भी है?
फिर भी कुछ लोग अभी भी हैं ऐसे,
शायद जिनके अच्छे कर्मों से तू ज़िंदा है
उन्हें देख के लगता है कि,
ये तो रहमत का बाशिंदा है
मुझे कभी नहीं मिलता ईश्वर,
किसी मस्जिद में या शिवाले में
जब भी देखता हूं उसको,
वो दिखता है किसी भूखे के निवाले में,
तो क्यों पूजते हैं हम मंदिर,
क्यों मस्जिदों में शीश झुकाते हैं,
जबकि वो तो आकर बैठा है,
हर गरीब के आलय में,
और जब कोई तकलीफ में होता है,
या कोई भूख से रोता है
जो तकलीफों से उन्हें बचाता है,
भूखे की भूख मिटाता है
तब उसे देख आता दिल में,
हां सच में यही वो बाशिंदा है
छोटे ही सही थोड़े ही सही,
पर शायद तू इनमें ज़िंदा है
इसीलिए मुझे पूछना है तुझसे
क्या सच में ये तेरा बंदा है?
-मयंक शुक्ला
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