भटका इंसान
Updated: Dec 30, 2021

पंचतत्व के मिलन मात्र से,
अस्तित्वा जिसका फैला है,
वह इंसान चला आंकने,
क्या मंगल ग्रह पर मुमकिन डेरा है।
धरती माता कि ऊष्मा से,
संभव जिसका बसेरा है,
अपनी भूल-तलक वह फूंक रहा है,
उसी के अंतर-प्राण।
हवा-बयार, पानी बिना,
जीवन जिसका क्षण भर भी दुर्लभ है,
प्रचार-प्रसार में मग्न वो मानव,
समझ बैठा खुद को प्रकृति का संरक्षक है।
आकाशगंगा कि अनंतता के आगे,
जिस पृथ्वी का अस्तित्व भी ओछा है,
वहाँ अपनी छोटी सी कुटिया में बैठा इंसान ,
समझ बैठा खुद को खुद को जीवमात्र का स्वामी है।
-श्रेयश
#life #nature #human #foodchain #pollution #globalwarming #humans #man #woman #modern #lifestyle #hindi #poem #hindipoem #cheap #powerlesshumans #greenary #forest #dreams#dreaming#daydream#love#selflove#mot