"मैं आज भी हूँ खड़ा!"- तान्या श्रीवास्तव

इस जग के प्रबल खेल में
मैं आज भी हूँ खड़ा
तू भी अब आज़मा ही ले
कि तू बड़ा या मैं बड़ा ।
तू पूर्णता कि खोज में
हर दर भटकता ही रहा,
मैं जीवन कि हर एक मोड़ पर
एक सीख - सीखता ही रहा ।
प्रतिमा लगाता सुख की तू
कि दुख कभी न आ सके,
मैं राह चलता - चल गया
दुख, सुख में मेरे ढल गए।
न कर गुरूर इस बात का
कि सुख तेरे समीप है,
ये जग प्रगतिशील है,
तख्ता बदलता ही रहा ।
मैं राह चलता ही गया
पाया बहुत, खोया भी कुछ,
फिर क्यों मैं रोता ही रहूँ
जीवन इसी का नाम है।
समय जो है चलता रहा
रास्ता काटता रहा,
फ़िर देखले मेरे सामने है
रास्ता कितना पड़ा।
इस जग के प्रबल खेल में
मैं आज भी हूँ खड़ा
अब तो सबको दिख गया
कि तू बड़ा या मैं बड़ा,
कि तू बड़ा या मैं बड़ा ।
-तान्या श्रीवास्तव
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