
मंजिल की तलाश में - तुषार गोयल
आँखों में मंज़िले थी
गिरे और सम्बलते रहे
ईरादा बस जीतने का था
वक्त बेवक्त मौसम बदलते रहे
सुरज बनकर जो निकलना था
इसलिए चाँद बनकर ढलते रहे
चुबते रहे राहों के काटे और कंकड़
हारना गवारा नहीं तो बस चलते रहे
आंधियो में कहाँ दम था जो रोकले हमे
हमारे चिराग हवा में भी जलते रहे ।
