top of page
Image by Leo Chane

मैं तब लिखती हूँ



जब सूर्य की किरणें उसकी सुंदर छवि पर आकर गिरती हैं,

तब मैं प्रेम के संगीत लिखती हूँ,

जब हर कोई अपना, उत्तरकाल में पराया हो जाता है,

तब मैं उसके लिए बिदाई के गीत लिखती हूँ।


जब अकेलेपन में मन काँप उठता है,

तब उसको शाँत करने को लोक गीत लिखती हूँ।

जब मेरे किसी अपने की मृत्यु होती है,

तब मेरी तड़पती हुई आत्मा लघु कथा लिखती है।


समय की धार से जब दिलों में दूरियाँ पैदा होती हैं,

तब मेरी क़लम उन ख़ास इंसानों को अपने पास रखती है।

प्रकृति के विनाश से जब मन धुँधला होता है,

तब लिखने की प्रेरणा मिलती है।


किसने कहा कि लिखने के लिए दुःख की आवश्यकता है?

मुझे तो हर सुख की बूँदें भी लिखने को प्रेरित करती हैं।


प्रेम के मधुर संबंध पर तो सब लिखते हैं,

पर हर लाचार के रुदन,

हर अन्याय की आवाज़ जब मेरे कानों में गूँजती है,

तब मुझे लिखने की प्रेरणा मिलती है।


लिखती हूँ ताकि ,

अपनी आँखों से अपनी ही काया को देख सकूँ,

अपने छंद सी आवाज़ को सुन सकूँ,

अपने आप से मीठी वाणी बोल सकूँ,

हर विपदाओं की बारिश में ख़ुद को संभाल सकूँ।