यह उन दिनों की बात है।

यह उन दिनों की बात है,
जब एक छोटे से मकान में सारा परिवार मिलजुलकर रहता था ।
मगर अब बड़ा मकान होने के बाद सब दूर रहते है ।
यह उन दिनों की बात है,
जब परिवार में एक टेलीफोन हुआ करता था और सब उस से जुड़े रहते थे ।
मगर अब सबके अपने मोबाईल है और सब दूर रहते है ।
यह उन दिनों की बात है,
जब माँ हाथ में चाय का प्याला पकड़ा देती थी ।
मगर अब कॉफी पीनी पड़ती है ।
यह उन दिनों की बात है,
जब पिता के साथ मेला देखने जाया करते थे ।
मगर अब तो वक़्त ही नही मिलता ।
यह उन दिनों की बात है,
चार पैसे में खुशियां आ जाती थी ।
मगर अब तो लाखो में भी नही आती ।
यह उन दिनों की बात है,
जब साइकिल पर बस्ता टांग स्कूल जाया करते थे ।
मगर अब तो सिर्फ ऑफिस के चक्कर काटते है ।
यह उन दिनों की बात है,
जब सारे दोस्त एक संग खेला करते थे ।
मगर तो सब ऑफिस वाले बाबू बन गए ।
यह उन दिनों की बात है,
जब सबके पास अपनो के लिए वक़्त होता था
और पैसा थोड़ा कम होता था ।
मगर आज सब पर पैसा होता है
सिर्फ अपनो के लिए वक़्त नही होता ।
- तुषार गोयल
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