हैवनों से हारे हम..!! (बाल यौन शोषण)

एक वयस्क महिला का सौंदर्य या रूप किसी पुरुष को आकर्षित करता है तो यह स्वाभाविक है परन्तु एक मासूम बच्चा जो केवल खेल- खिलौने और नटखट बातों से ही दिल जीतने का हुनर रखता है उनके साथ कोई शख्स इतनी हैवानियत कैसे कर सकता है? क्या मिला होगा उन दरिंदों को उन मासूमों के कोमल शरीर के साथ बर्बरता बरत कर।
क्या ऐसा करने वाले दिमागी बीमार होते हैं? क्या बाल यौन शोषण करने वालों की आत्मा नहीं होती या उन्हें डर नहीं होता की आज जो वह काम कर रहे हैं कल को उनके भी औलाद होगी। क्या उन बच्चों की चीखें उनके कानों में नहीं गूंजती होगी? क्या वो दरिंदे चैन से सो जाते होंगे? मेरे ख्याल से तो उन्हें ईश्वर भी न बुलाना चाहेगा अपने पास क्योंकि मौत भी इनसे डर जाती होगी।

ऐसी घटनाएं हमें अंदर से खकझोर के रख देती हैं और मजबूर करदेती हैं ये सोंचने पर की क्या इंसान की मानसिकता इस क़दर निकृष्ट हो चुकी है की एक मासूमियत भरा, भोलापन और प्यारा सा चेहरा उस हैवान के आगे हार जाता है। उन बच्चों के घर वालों और माता - पिता के सर पर हाथ रखने वालों से कहूँगी कि अपना हाथ उनके सर पे रखने के बजाय उन वहशियों की गर्दन पर रख के दबा दो ताकि एक बुराई तो कम हो इस दुनिया से उनको तो पश्चाताप का मौका भी नहीं देना चाहिए। मेरा सवाल यह है कि ऐसे लोगों को उनके किये की सजा देने पर्याप्त होगा। इस बीमार मानसिकता वालों का हिसाब तो ऊपर वाला ही करेगा। लेकिन ऐसी घटनाएं एक ऐसा सवाल खड़ा कर जाती हैं जिसका जवाब कोई नहीं दे सकता।
-इक़रा असद
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