चेहरे!

यूं तो इस साल दोस्तो से मिलना नहीं हो रहा,
और बंद बाकी सब बाज़ार है।
ये बाकियों के लिए पहली दफा होगा,
मैंने ये मंज़र पहले भी देखा कई बार है।
रोज़ ही दुखरियो की हालात सामने आ जाती हैं,
इसमें ,"ये जो अख़बार है"।
अब वो भी चेहरा ढक कर चलने लगे है ,
जिनके खुदके चेहरे हज़ार है।
इमरोज़ भी एक के हम यादो में आने लगे हैं
जिनको खुद पर दस्तरस था।
अब ज़रूरत पड़ी तो फरामोश हो गए मेरी तराज से,
हां बात अलग है वो पिछला बरस था।
चेहरे महज रंज में और मर्ग में असल दिखते हैं,
वरना तो ता-आरूफ सिर्फ नकाबो से हुआ था।
अब तो पहचान करना बेहद आसान है मेरे लिए,
वरना तो पहले मशालों से नहीं चिरागो से भी धुआ था।
-शांतनु शर्मा (@_shantanusharma_78)
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